हमारे देश में बदलाव नही आता क्यूंकि
गरीब में हिम्मत नही,
मीडील क्लास को फुर्सत नही,
अमीरों को जरूरत नही.
कितने भी अच्छे कर्म कर लो. मरने के बाद लोग उसी को याद रखेगें जो उधार लेकर मरा हो.
दिन भर बाहर कितना भी घूम लो मगर खूब सूरत लड़कियां तभी दिखेंगी, जब घर वाली के साथ बाजार जाओगे.
अकेले पीने के बाद सबसे बड़ी दिक्कत तो यह होती है कि अंग्रेजी किसके साथ बोलें.
अगर पैसा पेड़ पर उगता तो लड़कियां बंदरों से भी सेट हो जाती.
मोहब्बत बिल्कुल शतरंज के खेल जैसी है. एक गलत चाल और सीधे शादी.
कुछ लड़कियां हैंडसम पति के लिए सोलह सोमवार के व्रत रखती हैं. उनके पति को देख कर लगता है कि शिवजी सोलह के सोलह सोमवार छुट्टी पर थे.
बड़ी कोशिशों के बाद पहली बार वो हमारे घर आई थी और माँ बोली, "जा बेटा बहन के लिए ठंडा तो लेकर आ"
जिस उम्र में हमारे दाँत टूटे थे. आज कल के बच्चों के उस उम्र में दिल टूट जाते हैं.
एक आदमी डाॅ के पास चेकअप कराने गया. डाॅ ने कहा आपको आराम की सख्त जरूरत है. नींद की गोली दे रहा हु बीवी को खिला देना.
शादी से पहले भगवान से माँगा था, "अच्छी पकाने वाली देना"
साला जल्दबाजी में 'खाना' बोलना ही भूल गया.
ये whatsapp भी ना बिलकुल बच्चे की लंगोट जैसा है. होता कुछ भी नहीं है. मगर बार बार चेक करना पड़ता है.
ऐटिट्यूड की हाइट तो देखें.
एक आदमी कॉकरोच को मार रहा था. मरने से पहले कॉकरोच ने आदमी से आखिरी बार बोला, "मार दे मुझे. डरपोक कहीं के. तू मुझ से इसलिए चिढ़ता है क्यों कि तेरी बीवी मुझ से डरती है और तुझसे नहीं"
भाषा का फर्क देखिए.
अगर पत्नी को हिंदी में कहो कि तुम हत्या रिन लग रही हो तो रात का ख़ाना भी नहीं मिलेगा.
लेकिन अगर आपने उर्दू में कहा कि कातिल लग रही हो तो शाम कि चाय भी पकोड़ों के साथ मिलेगी.