ट्रेन को पुलिस ने चारों तरफ से घेर रखा था क्योंकि बिना टिकट वालों की चेकिंग हो रही थी !!
इतने में एक सरदार जी ट्रेन से कुदे और लगे भागने उनको भागते देख सभी पुलिस वाले , मजिस्ट्रेट सब उसको पकडने दौडे
देखते ही देखते सरदार जी के साथ कई लोग भागने लगे ,
चुंकि सभी पुलिस वालों और मजिस्ट्रेट का ध्यान सरदार जी की तरफ था इसलिए दुसरों के उपर किसी का ध्यान नहीं गया !!
अंत में सरदार जी को पकडा गया लेकिन साथ दौडने वाले भाग निकले
फिर पुलिस वालों ने सरदारजी से टिकट दिखाने को कहा
सरदार जी ने जेब से तुरंत टिकट निकाला और मजिस्ट्रेट के हाथों में रख दिया !
सभी हक्के बक्के ,
मजिस्ट्रेट ने चिल्लाकर पुछा जब तेरे पास टिकट थी तो तुम भागे क्यों ?
सरदार जी मौन रहे हल्के से मुस्कराते रहे !!
जब मजिस्ट्रेट ने ज्यादा जोर देकर पुछा तो सरदार जी ने मुंह खोला और कहा "हजारों सवालों से अच्छी है मेरी दौड, ना जाने कितने बेटिकटों की आबरू बच गई " !!!!
मतलब सरदार जी तो ईमानदार रह गए लेकिन कई घोटाले बाज़ों को अपने ईमानदारी के सर्टिफिकेट से बचा ले गए।।
इस कहानी का डॉ. मनमोहन सिंह से कुछ लेना देना नहीं है.......